नितांत विशिष्ट और आयुर्वेद के सिद्धांत पर आधारित, योग मुद्राएँ आरोग्यकार साधन समझी जाती हैं,
संस्कृत शब्द मुद्रा का अर्थ शरीर के हावभाव (अंग विन्यास) या प्रवृत्ति।
मुद्रा के लिए संपूर्ण शरीर अथवा केवल हाथों का उपयोग होता है। मुद्रा का योगिक सांसो के साथ अभ्यास शरीर के विभिन्न अंगो को उत्तेजित कर शरीर में प्राण के प्रवाह को सचेतन करता है। मुद्रा का योगिक सांसो के साथ अभ्यास शरीर के विभिन्न अंगो को उत्तेजित कर शरीर में प्राण के प्रवाह को सचेतन करता है।
हठ योग प्रदीपिका और घेरन्ड संहिता मुद्राओं पर मुख्य ग्रंथ हैं। हठ योग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं और घेरन्ड संहिता में 25 मुद्राओं का वर्णन है। कुछ योग मुद्राएँ हमारे लिए सहज हैं। बस अपनी उंगलियों से हाथों को स्पर्श करके हम अपनी प्रवृत्ति, सोच को प्रभावित कर सकते हैं। और वहीं अपने भीतर की आंतरिक शक्ति से शरीर को स्वस्थ कर सकते हैं।
घेरण्ड संहिता में तीसरे अध्याय में योग की मुद्राओं का वर्णन किया गया है । मुद्राओं का अभ्यास करने से शरीर में स्थिरता आती है । घेरण्ड संहिता में कुल पच्चीस (25) मुद्राओं का उल्लेख मिलता है ।