आज प्रदूषण से हवा भर गयी है | ऐसे वातावरण में जल नेति अत्यंत उपयोगी शुद्धि क्रिया है |
1) एक प्रतिशत नमक मिला हलका गरम पानी विशेष टोंटीवाले लोटे में भर कर उसे हाथ में लेना चाहिए | बैठ कर या खड़े होकर सिर को थोड़ा आगे की ओर झुका कर उसे बायीं और थोड़ा घुमाना चाहिए | बायें नासिकारंध्र में टोंटी रख कर पानी को अंदर लेकर, दायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए | सांस मुंह से लेनी और छोड़नी चाहिए | लोटे । का पानी जब तक समाप्त न हो । जाये तब तक यह क्रिया करनी रंध्र से पानी अंदर ले कर बायें नासिका रंध्र से बाहर निकालना चाहिए |
दोनो ओर से यह क्रिया करने के बाद दोनों कान हाथों के दोनों अगूठों से बंद करते हुए थोड़ा सामने की ओर झुक कर मुँह से हवा जोर से अंदर लेकर नाक से झटके से बाहर निकाल देनी चाहिए | जब तक नाक से सारा पानी निकल न जाये, तब तक ऐसा करना चाहिए | नहीं तो जुकाम हो सकता है | इसके लिए केन्द्रों में विशेष पात्र मिलते हैं | यह शुद्धि क्रिया रोज करते रहें तो बड़ा लाभ होगा |
टोंटीवाले लोटे में हलका गरम पानी भर कर उसमें थोड़ा सा नमक डालें । उस पानी को टोंटी के द्वारा नासिका रंध्र से अंदर खींच कर, मुंह से वह पानी बाहर निकाल देना चाहिए । बाद दूसरे नासिकारंध्र से भी पानी टोंटी द्वारा अंदर खींच कर मुँह से बाहर निकालें ।
3) इसके बाद गिलास में पानी भर कर नाक के (नथुनों) सामने रख कर दोनों नासिका रंधों से पानी अंदर खींच कर उसे मुँह से बाहर निकाल देना चाहिए | ये क्रियाएँ कठिन है| अत: सावधानी से ये क्रियाएँ करनी चाहिए।
3. नेति :- नेति क्रिया के दो भाग किये गए हैं –
(1) जलनेति
(2) सूत्रनेति ।
बीच में गांठ न हो, ऐसे साफ धागे में मोम लगा कर उसे चिकना बनाना चाहिए। उस सूत्र से नेति शुद्धि क्रिया करनी चाहिए। योग के केन्द्रों में यह विशेष धागा मिलेगा |
धागे की जगह चार नंबरवाले केथेडर-रब्बर के धागे का उपयोग भी कर सकते हैं |
एक सूत्र को दायें नथुने में रख कर गले के अंदर तक उसे धीमे से धकेलना चाहिए । तर्जनी और मध्यमा अंगुलियाँ मुँह में डाल कर धीरे से सूत्र के सिरे को उन उंगलियों से पकड़ कर मुँह से बाहर खींचना चाहिए। दोनों छोरों को हाथ से पकड़ कर आगे और पीछे दस बीस बाहर निकाल दें।
इसी प्रकार दूसरे नथुने से भी सूत्र के से बाहर लाकर ऊपर लिखे अनुसार आगे और पीछे आहिस्ते-आहिस्ते सावधानी से खींचते हुए बाहर निकाल लें ।
साधक दोनों नथुनों में दो सूत्रों का डाल कर उन्हें आपस में जोड कर, कुशल मार्गदर्शन में अभ्यास करते हुए ये सूत्र एक नथुने से सीधे दूसरे नथुने से बाहर ला सकते हैं, यह एक कठिन क्रिया है |
सूत्रनेति क्रिया की समाप्ति के बाद नमक से मिला थोड़ा सा हलका गरम पानी मुंह में भर कर थोड़ी देर गट-गट करके उसे बाहर थूक देना चाहिए। आरंभ में थोड़ी सी तकलीफ होगी | इससे घबराना नहीं चाहिए |
जल नेति क्रिया करने के बाद सूत्र नेति क्रिया करनी चाहिए। सूत्रनेति क्रिया के बाद फिर जलनेति क्रिया करनी चाहिए | सूत्र से रगड़ खा कर कभी कभी थोड़ा सा रक्त निकल सकता है | इससे डरना नहीं चाहिए| एक दिन सूत्र नेतिक्रिया को स्थगित कर देना चाहिए | सूत्र नेति क्रिया के करने के एक दिन पूर्व नाक में हलके गरम तेल या घी की तीन चार बूंदे अवश्य डालनी चाहिए। आरंभ में विशेषज्ञ के द्वारा यह क्रिया करा कर, अभ्यास के बाद साधक स्वयं कर सकते हैं।
जलनेति क्रिया हर दिन कर सकते हैं । तेल, घृत एवं सूत्र नेति क्रिया कमसे कम हफ्ते में एक बार करें | ये क्रियाएँ कुछ ही मिनटों में की जा सकती हैं। अत: नियमबद्ध रूप से इन्हें करें तो लाभ होगा |
उपर्युक्त सभी क्रियाओं के बाद जलनेति क्रिया अवश्य करें तथा नाक के अंदर के पानी को भस्त्रिका क्रिया करते हुए बाहर छींक दें |
नाक, कान, मुँह, कंठ, नेत्र तथा मस्तिष्क से संबंधित बीमारियाँ दूर होंगी | बहरापन, कानों में पीब-रक्त का निकलना, कानों में विविध ध्वनियों का गूँजना, नाक में अवरोध, नाक में बढ़ता दुर्मास, सूंघने पर गंध का अनुमान न होना, साइनस, ऑखों का लाल होना, ऑखों का पीलापन, मस्तिष्क संबंधी रोग, स्मरण शक्ति का घटना, धारणाशक्ति का घटना, सिर दर्द, आधा सिरदर्द तथा अनिद्रा आदि रोगों की तीव्रता कम होगी। कंठ से मस्तिष्क के ऊपर तक जितने अवयव हैं सभी की शुद्धि होगी |
टॉटीवाला लोटा उपलब्ध न होने पर साधक हथेली मे जल भर कर भी जलनेति क्रिया का लाभ ले सकते है| कुशल प्रशिक्षक ऐसी विधि सिखा सकते है |
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