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सूरज बड़ा तेजस्वी तथा शक्तिमान है। इसीलिए सभी धर्मावलंबी प्राचीन काल से सूरज की स्तुति करते रहे हैं। सूर्य रश्मि की शक्ति अपार और अनुपम है| सूर्य शक्ति न हो तो जीवन ही नहीं। इसीलिए सूर्य नमस्कार की विधि अमल में आर्यी |
सुबह और शाम जब सूर्योदय तथा सूर्यास्त होता है, तब वायु में प्राणवायु (ऑक्सीजन) अधिक रहती है। उस समय सूरज के सामने खड़े होकर सूर्य नमस्कार करते हुए आसन करें तो बड़ा लाभ होगा। इन आसनों को योग विद्या में शरीर स्थितियाँ कहते हैं। सूर्य के नाम-मंत्रों का भी निर्धारण किया गया है। एक-एक मंत्र का पाठ करते हुए 12 शारीरिक स्थितियाँ अर्थात् आसन करना चाहिए। मंत्रों के उच्चारण से शरीर और मन में शक्ति की तरंगें उत्पन्न होती हैं। मंत्रोच्चार के साथ सूर्य नमस्कार संबंधी आसन भी करें, तो सूर्य की स्फूर्ति साधक को मिलेगी। आसन करते समय विविध अवयवों पर मन को केन्द्रित करना जरूरी है। इससे ज्यादा लाभ होगा |
सूर्य नमस्कार संबंधी आसन सभी लोग कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए सूर्य नमस्कार ईश्वर का वरदान है। पहले तीन बार सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें। इसके बाद एक-एक के हिसाब से उन्हें बढ़ाते जायें। 12 आसन अर्थात् 12 शारीरिक स्थितियों को अमल में लावें।
कमर दर्द, गर्दन दर्द, हृदय की बीमारियों तथा अधिक रक्त चाप से पीड़ित लोगों को उनके शमन के बाद सूर्य नमस्कार संबंधी आसन शुरू करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार मंत्र 1008 हैं। उनमें से 15 मंत्र बहुप्रचलित हैं।
मंत्र् – अञ्थं
ॐ सूर्याय नमः हे जीवन दाता|प्रणाम |
ॐ अदित्याय नमः हे आद्य रक्षक! प्रणाम |
ॐ अन्शुले नमः हे किरण्मय! प्रणाम |
ॐ अकाय नमः हे अपवित्रता के निर्मूलक प्रणाम।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः हे स्वर्णगर्भ! प्रणाम |
ॐ भास्कराय नम: हे अात्मा ज्ञान प्रेरक! प्रणाम।
ॐ प्रभाकराय नम: हे दीपितमान! प्रणाम |
ॐ दिनकराय नमः हे दिनकर प्रणाम।
ॐ भानवे नमः हे ज्योति पुंज! प्रणाम।
ॐ पूष्णे नमः हे पोषक प्रणाम।
ॐ एवृगाय नमः हे आकाशगामी! प्रणाम |
ॐ मित्राय नमः हे सब के मित्र! प्रणाम।
ॐ सवित्रे नमः हे शक्ति पुंज! प्रणाम |
ॐ मरीचये नमः हे सूर्य रश्मियों! प्रणाम।
ॐ रवये नमः हे आनंद और उत्साह दाता! प्रणाम |
एक-एक मंत्र पढ़ कर एक-एक सूर्य नमस्कार करें। एक सूर्य नमस्कार का मतलब है 12 आसनों का ग्रुप |
1. पहली स्थिति – (अ) नमस्कारासन या प्रणामासन, (आ) ह्रस्तस्तनाः
(अ) साँस लेते हुए नमस्कार मुद्रा में प्रणाम करते हुए सीधे खड़े हों। मूल बंध करते हुऐ एक मंत्र का पाठ करते हुए सांस छोड़ते हुए सूर्य नमस्कार का आरंभ करें |
(आ) मूल बंध छोड़ कर हाथ आगे पसारें |
2. दूसरी स्थिति – अर्ध चंद्रासन या हस्त उत्तानासनपहली स्थिति में रह कर सांस लेते हुए सिर सहित दोनों हाथों को ऊपर से पीछे की ओर झुकावें। पैर न झुकावें। शरीर को पीछे की ओर झुकाते समय बैलन्स ठीक रहे। नहीं तो पीछे गिर सकते हैं।
3. तीसरी स्थिति – पादहस्तासन
दूसरी स्थिति में रह कर अब सामने झुकते हुए सांस छोड़ते हुए, दोनों हाथों से चरणों का स्पर्श करें। माथे से घुटनों को छूने का प्रयास हो। गर्दन में दर्द हो तो सिर ज्यादा न झुकावें ।
4. चौथी स्थिति – अध्र संचालनासन या अं|जनेयासन
तीसरी स्थिति में रह कर हाथों को ज़मीन पर रखें। बायां पैर पूरा पीछे ले जावें। सांस लेते हुए दोनों हाथ व सिर ऊपर उठावें। प्रारंभ में कुछ दिनों तक बायाँ घुटना ज़मीन पर टिका कर रखें।
5. पाँचवीं स्थिति – पर्वतासन
चौथी स्थिति में रह कर दोनों हाथ नीचे लाकर ज़मीन पर रख दें। दायाँ पैर बायें पैर के पास पीछे ले जाकर कमर ऊपर उठावें | एड़ियाँ ऊपर नीचे हिलाते रहें। सांस लेते और छोड़ते रहें।
6. छठी स्थिति – (अ) शशांकासन, (आ) साटांग या अष्टांग नमस्कारासन
(अ) पाँचवीं स्थिति में रह कर दोनों घुटने, ठोड़ी और हथेलियाँ जमीन पर रखें। (आ) धीमे से छाती को आगे सरकावें। कमर एवं पेट को थोड़ा उठा कर रखें। सांस छोड़े |
7. सातवी स्थिति – सपसिन या भुजंगासन
छठी स्थिति में रह कर हाथ ज़मीन पर दबा कर साँस लेते हुए छाती तथा सिर को पूरा ऊपर उठावें। पैरों की उंगलियों तथा हाथों पर शरीर को टिका कर रखें।
8. आठर्वी स्थिति – भूकंपासन
सातवीं स्थिति में रह कर हाथ और पैर ज़मीन पर दबा कर शरीर के मध्य भाग को सांस छोडते हुए ऊपर उठावें। कटि एवं एडियों को दायीं तथा बायीं ओर हिलाते रहें।
9. नौवीं स्थिति – आन्ध्रसंचालनासन
आठवीं स्थिति में रह कर बायां पैर आगे लावें | दोनों हाथ ऊपर उठावें । सांस लेते हुए ऊपर देखते हुए सिर ऊपर से पीछे ले जावें ।
10. दसवीं स्थिति – पादहस्तासन
नौवीं स्थिति में रह कर दोनों हाथों को ज़मीन पर रखें । दायाँ पैर बायें पैर के पास सामने लावें । सांस छोड़ते हुए माथे से घुटने का स्पर्श करें।
11. ग्यारहवी स्थिति – वृक्षासन
दसवीं स्थिति में रह कर सांस लेते हुए दोंनो हाथ ऊपर उठावें। दोनों हाथों के अंगूठे एक दूसरे से मिले रहें। सारा शरीर सीधे खड़ा रहे।
12. बारहवी स्थिति – नमस्कारासन या प्रणामासन
ग्यारहवीं स्थिति में रह कर दोनों हाथ ऊपर से दोनों तरफ बगल से घुमाते हुए उन्हें आगे छाती के पास ले आवें। सांस छोड़ते हुए दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करें |
सूर्य नमस्कार रोज करते रहना चाहिए। परन्तु निम्न सूचित चार प्रकार से करते हुए आगे नमस्कार मुद्रा करें |
1. पहली विधि – इसमें ऊपर उल्लिखित स्थितियों में से 1, 2, 3, 11,12. मात्र पाँच स्थितियों का अभ्यास करें।
2. दूसरी विधि – इसमें ऊपर उल्लिखित स्थितियों में से 1, 2, 3, 5, 10, 11,12 मात्र सात स्थितियों का अभ्यास करें।
3. तीसरी विधि – इसमें ऊपर उल्लिखित स्थितियों में से 1, 2, 3, 4, 5, 9, 10, 11, 12 मात्र नौ स्थितियाँ का अभ्यास करें।
4. चौथी विधि – इसमें उपरोक्त तीन विधियों का अभ्यास करने के बाद 12 तक की सभी स्थितियों का अभ्यास करना है। ऐसा करने से सूर्य नमस्कार का अभ्यास सरल हो जाता है।
ऊपर उल्लिखित सूर्य नमस्कार शक्ति के अनुसार करने के बाद थोड़ी देर निस्पंद भावासन में बैठ कर आराम लेना चाहिए। बाद शवासन कर पूर्ण विश्राम अवश्य लेना चाहिए।
लाभ –
आसन – प्राणायाम – ध्यान – मुद्रा – बंध – मंत्रोच्चारण से परिपूर्ण इन क्रियाओं से सभी शारीरिक अवयव चुस्त और शक्तिशाली बनेंगे। मेरुदंड, नस-नाडियाँ तथा स्नायु मंडल सशक्त होगे | मस्तिष्क सतेज होगा | बुद्धि तीव्र बनेगी | हृदय, फेफडों, उदर, मूत्र पिंडो जैसे मुख्य अवयवों की कार्य क्षमता नियमित होगी, सभी अंतस्त्रावी ग्रंथियां भी ठीक काम करने लगेंगीं । कुंडलिनी जागरण के लिये शक्तिचक्र उद्दीप्त होंगें । स्थूलता घटेगी। व्यर्थ चरबी कम होगी। गाल चिकने बनेंगे। चेहरा सुंदर कांतिवान बनेगा। अजीर्ण, कब्ज़ आदि कई बीमारियाँ दूर होंगी। स्त्रियों का गर्भाशय शुद्ध होगा। स्त्रियों की कई बीमारियाँ कम होंगी। जिनको अधिक समय नहीं मिलता उनका कर्तव्य है कि कुछ ही सही, सूर्यनस्कार करते हुए शारीरिक एवं मानसिक लाभ अवश्य उठावें। प्राचीन काल से सूर्यनमस्कार को सूर्य भगवान की पूजा वे? रूप में तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करनेवाले साधन वेन रूप में विशेष महत्व मिला। सूर्योदय के समय ये क्रियाएँ करनी चाहिए। परन्तु आजकल कुछ लोग देर से जाग रहे हैं। तो भी वे समय मिलने पर ये क्रियाएँ कर लाभ उठा सकते हैं।