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Old school Easter eggs.

कुम्भक  ( प्राणायाम ) वर्णन

सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा ।

भस्त्रिका भ्रामरी मूर्छा केवली चाष्टकुम्भिका: ।। 45 ।।

भावार्थ :- सहित, सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा व केवली ये आठ प्रकार के कुम्भक अर्थात् प्राणायाम कहे

सहित कुम्भक वर्णन

सहितो द्विविध: प्रोक्त: सगर्भश्चनिगर्भक: ।

सगर्भो बीजमुच्चार्य निगर्भो बीज वर्जित: ।। 46 ।।

भावार्थ :- यह सहित कुम्भक दो प्रकार से किया जाता है । एक सगर्भ और दूसरा निगर्भ । सगर्भ कुम्भक को बीजमन्त्र के उच्चारण के साथ व निगर्भ को बिना बीजमन्त्र का उच्चारण करे किया जाता है ।

सगर्भ प्राणायाम विधि वर्णन

प्राणायामं सगर्भं च प्रथमं कथयामि ते ।

सुखासने चोपविश्य प्राङ्मुखो वाप्युदङ्मुख: ।

ध्यायेद्विधिं रजोगुणं रक्तवर्णमवर्णकम् ।। 47 ।।

इडया पूरयेद्वायुं मात्रया षोडशै: सुधी: ।

पूरकान्ते कुम्भकाद्ये कर्तव्यस्तूड्डीयानक: ।। 48 ।।

सत्त्वमयं हरिंध्यात्वा उकारं कृष्णवर्णकम् ।

चतु:षष्टया च मात्रया कुम्भकेनैव धारयेत् ।। 49 ।।

तमोमयं शिवं ध्यात्वा मकारं शुक्लवर्णकम् ।

द्वात्रिंशन्मात्रया चैव रेचयेद्विधिना: पुनः ।। 50 ।।

भावार्थ :- अब मैं पहले सगर्भ प्राणायाम की विधि को कहता हूँ । पहले साधक को किसी भी सुखासन में बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अपना मुख रखना चाहिए । इसके बाद उसे रजोगुण की प्रधानता वाले लाल रंग से युक्त ‘अकार’ बीजमन्त्र का ध्यान करना चाहिए ।

इसके बाद बुद्विमान साधक उसका (अकार बीजमंत्र का ) सोलह बार जप करते हुए इडा नाड़ी ( बायीं नासिका ) से प्राणवायु को शरीर के अन्दर भरें और श्वास को अन्दर भरने के बाद व उसे अन्दर ही रोकने से ठीक पहले उड्डीयान बन्ध का अभ्यास करना चाहिए ।

अब श्वास को अन्दर भरने के बाद सत्वगुण प्रधान विष्णु के काले रंग से युक्त ‘उकार’ बीजमन्त्र का ध्यान करते हुए उसका चौसठ बार जप करते हुए उस प्राणवायु को शरीर के अन्दर ही रोके रखें ।

इसके बाद पुनः तमोगुण प्रधान शिव और शुक्ल वर्ण से युक्त ‘मकार’ बीजमन्त्र का ध्यान करते हुए उसका बत्तीस बार जप करते हुए उसे दूसरी ( दायीं ) नासिका से बाहर निकाल दें ।

विशेष :- इस सगर्भ प्राणायाम से सम्बंधित कई प्रश्न बनते हैं । जैसे- सगर्भ प्राणयाम करते हुए पहले किस नाड़ी अथवा नासिका से श्वास को भरना चाहिए ? जिसका उत्तर है इडा नाड़ी अथवा बायीं नासिका से । कितनी बार तक मन्त्र का जप करते हुए प्राण को अन्दर भरना चाहिए ? उत्तर है सोलह बार तक । प्राणवायु को अन्दर भरते हुए किस बीजमन्त्र का ध्यान करना चाहिए ? उत्तर है अकार बीजमन्त्र का ।

प्राणवायु को कितने बीजमन्त्र का जप करते हुए अन्दर ही रोकना चाहिए ? उत्तर है चौसठ तक । कुम्भक के समय किस बीजमन्त्र का ध्यान करना चाहिए ? उत्तर है उकार का ।

प्राणवायु को दायीं नासिका से छोड़ते हुए कितने बीजमंत्रों का जप करना चाहिए व किस बीजमन्त्र का जप करना चाहिए ? उत्तर है बत्तीस बार मकार का ।

उड्डीयान बन्ध का अभ्यास कब- कब करना चाहिए ? उत्तर है प्राण को अन्दर भरने के बाद व अन्दर ही रोकने से ठीक पहले ।

सगर्भ प्राणायाम की पूरक विधि

पुनः पिङ्गलयापूर्य कुम्भकेनैव धारयेत् ।

इडया रेचयेत् पश्चात् तद् बीजेन क्रमेण तु ।। 51 ।।

भावार्थ :- अब इसके बाद फिर पहले जैसे ही क्रम अथवा प्रकार से ( जिस प्रकार बायीं नासिका से किया गया था ) किया गया था । ठीक उसी प्रकार दायीं नासिका से प्राणवायु को सोलह बीजमन्त्र का उच्चारण करते हुए शरीर के अन्दर भरें व चौसठ बार बीजमन्त्र का जप करते हुए उसे शरीर के अन्दर ही रोके रखें । इसके बाद उसी प्रकार बायीं नासिका से उस प्राणवायु को बत्तीस बीजमंत्र का जप करते हुए बाहर निकाल देना चाहिए ।


प्राणायाम 

प्राणायाम श्वास का सचेतन और जान-बूझकर किया गया नियंत्रण और विनियमन है (प्राण का अर्थ है श्वास और आयाम का अर्थ है नियंत्रण करना, विनियमन) हर श्वास में हम न केवल आक्सीजन ही प्राप्त करते हैं अपितु प्राण भी। प्राण ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा है, विश्व की वह शक्ति है जो सृष्टि-सृजन, संरक्षण और परिवर्तन करती है। यह जीवन और चेतनता का मूल तत्व है। प्राण भोजन में भी मिलता है, और इसीलिए स्वस्थ और संपूर्ण शाकाहारी खाद्य पदार्थ ग्रहण करना अति महत्वपूर्ण है।
प्राणायाम शरीर में प्राण का सचेतन मार्गदर्शन, पौष्टिकता, शारीरिक विषहीनता और सुधरी रोग-निरोधक शक्ति में वृद्धि करता है, और उसी के साथ-साथ आन्तरिक शांति, तनावहीनता व मानसिक स्पष्टता भी प्रदान करता है।
पुराणों में कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की लम्बी-अवधि का पूर्व-निर्धारण उसकी श्वासों की संख्या से ही है। योगी पुरुष ''समय-सुरक्षित" रखने का प्रयास करता है और अपने श्वास की गति धीमी रखकर जीवन को बढ़ाने, लम्बा करने का प्रयत्न करता है।* [1].

प्राणायाम के प्रभाव

शारीरिक प्रभाव

शरीर का स्वास्थ्य ठीक रखता है।
रक्त की शुद्धि करता है।
आक्सीजन को शरीर में पहुँचाने में सुधार करता है।
फेफड़ों और हृदय को मजबूत करता है।
रक्त-चाप को नियमित रखता है।
नाड़ी-तंत्र को नियमित, ठीक रखता है।
आरोग्य-कर प्रक्रिया और रोगहर चिकित्सा-प्रणाली सुदृढ़ करता है।
संक्रामकता निरोधक शक्ति बढ़ाता है।

मानसिक प्रभाव

मानसिक बोझ, घबराहट और दबाव को दूर करता है।
विचारों और भावनाओं को शान्त करता है।
आन्तरिक संतुलन बनाए रखता है।
ऊर्जा-अवरोधों को हटा देता है।

आध्यात्मिक प्रभाव

ध्यान की गहराइयों में पहुँचाता है।
चक्रों (ऊर्जा-केन्द्रों) को जागृत और शुद्ध करता है।
चेतना का विस्तार करता है।



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 Last Date Modified

2024-02-09 15:54:12

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