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1. सिद्धासनं

सिद्धासनं


निपुणों का कहना है कि योगी एवं सिद्ध पुरुष इस आसन में साधना कर सिद्धि प्राप्त करते थे | इसीलिए यह आसन सिद्धासन कहलाता है| पांच प्रधान आसनों में से यह एक है।


विधि –

दोनों पैर मोड़ कर बैठे। एक एड़ी अंडकोश के नीचे और एक एड़ी अंडकोश के ऊपर रखें । ऊपर के पैर की उंगलियाँ दूसरे पैर की जाँघ और पिंडली के बीच रखें। दोनों हथेलियाँ घुटनों पर या एक दूसरे पर गोद में रखें। रीढ़ की हड़ी और सिर को, सीधा रखें। आँखें मूंद लें। सांस सामान्य चलती रहे | पहले 3 या 4 मिनट, इसके बाद फिर बढ़ाते-बढ़ाते 15 मिनट तक बैठे रहें। ध्यान की साधना करें।
पुराने ज़माने में योगी ध्यान और तपस्या करते हुए कुछ घंटों तक यह आसन करते थे | ब्रह्मचारी, विद्यार्थी, योगी तथा सन्यासी का कर्तव्य है कि इस आसन में रह कर साधना आवश्य करें |

लाभ –

हृदय से संबंधित, साँस से संबंधित और वीर्य से संबंधित व्याधियाँ दूर होती हैं। वासनाएँ कम होती है| स्मरण शक्ति बढ़ती है। ध्यान के लिये मन तैयार होता है।


2. पद्मासन

पद्मासन


पांच प्रधान आसनों में से पद्मासन एक है| योग विशेषज्ञों का विश्वास है कि पारिवारिक बंधनों तथा व्यामोहों में उलझे रहनेवाले लोग इस पद्मासन का अभ्यास करें तो पानी में तैरते कमल की तरह, उनसे मुक्त रह सकते हैं। इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है।

विधि –

दायाँ पाँव, बायें पैर की जांघ पर रखें। दायाँ घुटना पकड़ कर ऊपर नीचे हिलावें। बाद घुटना उठा कर गोल घुमावें। इसी प्रकार बायें पैर से भी करें। दोनों पैर पसारें | बाद बायाँ पांव दायीं जांघ पर और दायाँ पांव बायीं जांघ पर रखें। यही पद्मासन है।
दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखें । तर्जनी को अंगूठे की मध्य रेखा पर टिकावें | बाकी तीनों उँगलियाँ सीधी रखें। चिन्मुद्रा बनावें।
भूकुटि या नासिका के अग्र भाग पर ध्यान केन्द्रित करें | मन को हृदय कमल में लीन करें। साँस सामान्य स्थिति में रहे | पद्मासन की समाप्ति के बाद दोनों पैर सीधे । पसारें और घुटनों और पैरों को हिला कर * आराम दें।
आजकल नीचे बैठने की आदत छूटती जा रही है। पैरों को मोड़ना मुश्किल हो रहा है। इसलिए कुछ साधक पद्मासन पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक पाँव दूसरे पैर की जाँघ पर रखें, दूसरा पैर पहले पैर के घुटने के नीचे रख कर अर्ध पद्मासन करने का अभ्यास करें तो ठीक होगा। कुछ दिन इस प्रकार अभ्यास करें तो पद्मासन करने में सुविधा होगी।


लाभ –


बड़ी देर तक हिले बिना इस आसन की मुद्रा में बैठे रहने से दिव्य सुख की प्राप्ति होती है| मानसिक थकावट नहीं होती | एकाग्रता बढ़ती है। जांघों को व्यर्थ चरबी घट जाती है।
हृदय, फेफड़े तथा सिर में रक्त प्रसार ठीक तरह से होता है। उन्हें शक्ति मिलती है। बुद्धि की कुशलता बढ़ती है। ध्यान की साधना के लिये यह उत्तम आसन है।


3. भद्रासन

भद्रासन

योगासनों में सिंह, पद्म, वज्र, सिध्द एवं भद्र, कुछ प्रधान आसन हैं। भद्रता इस आसन में मुख्य है। इसलिए यह भद्रासन कहलाता है।

विधि –


बैठ कर दोनों पैर पसारें। दोनों घुटने मोड़ें । दोनों तलुवे मिलावें। दोनों तलुवे उसी स्थिति में धीरे-धीरे नज़दीक लावें। दोनों हाथों से दोनों घुटनों को ज़मीन की ओर दबावें। बाद दोनों हाथों की उँगलियाँ मिला कर उनसे पैरों की उँगलियाँ पकड़ें। साँस सामान्य रहे। आँखें मूंद लें। मलद्वार एवं जननेन्द्रिय के मध्य भाग पर मन केन्द्रित करें। थोड़ी देर के बाद पैर पसार कर हाथों से घुटनों और पैरों को थपथपावें। आराम लें।


लाभ –


जाँघों, घुटनों और पिंडलियों में चुस्ती आ जायेगी। जननेन्द्रिय संबंधी व्याधियाँ कम होगी | मन को भद्रता प्राप्त होगी |

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5. वज्रासन

वज्रासन

 यह आसन वज्रनाड़ी को प्रभावित करता है| इसलिए यह वज्रासन कहलाता है। यह पांच प्रमुख आसनों में से एक है |



विधि –


दोनों पैर आगे की ओर पसार कर बैठे। दोनों घुटनों को नीचे की ओर मोड़ कर दोनों एड़ियों पर नितंब टिकावें। दोनों पैरों के अंगूठे एक दूसरे को छूते रहें। घुटनों पर हाथ रखें। सिर और रीढ़ की हड़ी को सीधा रखें। भोजन करने के बाद 15-20 मिनट यह आसन अवश्य करें।


सूचना –


आरंभ में बारी-बारी से केवल एक-एक पैर को मोड़ कर इस आसन का अभ्यास करें। इसे अर्ध-वज्रासन कहते हैं |


लाभ –

अजीर्ण, वात तथा साइटिका दर्द कम होंगे। पिंडलियों, घुटनों तथा जाँघों को शक्ति मिलेगी | भोजन को पचाने में यह आसन बड़ा उपयोगी है। भोजन के बाद एक मात्र यह आसन ही कर सकते हैं।

निषेध –

घुटनों के दर्द से पीड़ित लोग आरंभ में यह आसन न करें। नरम गद्दी पर बैठ कर आरंभ में यह आसन करने का प्रयत्न करें।

विशेष –

इस आसन के प्रयोजन पर ध्यान देकर सभी धर्मावलंबी यह आसन कर रहे हैं। नमाज़ करते समय मुसलमान भी यह क्रिया करते हैं। इसलिए यह नमाज़ आसन भी कहलाता है।



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7. सिंहासन

सिंहासन

मुख्य 5 आसनों में से सिंहासन एक है। सिंह की तरह यह आसन किया जाता है। इसलिए यह सिंहासन कहलाता है।
विधि –वज्रासन करें | दोनों हथेलियाँ घुटनों के बीच में से जमीन पर टिकावें।
छाती और गर्दन आगे की ओर करें। कमर नीचे दबाते हुए सिर ऊपर उठावें । नाक से सांस अंदर भरें | जीभ बाहर निकाल कर फोर्स के साथ साँस मुँह से बाहर छोड़ते हुए सिंह की तरह गर्जना करें|
चेहरे पर सिंह की जैसी विकरालता पैदा करें | तीन चार बार गरज कर वज्रासन में आवें | * इस क्रिया में अति न करें। शक्ति भर ही करें।
सिंहासन थोड़ा कठिन आसन है| इस आसन में 5 स्थितियों में अभ्यास करना है। एक-एक स्थिति की क्रिया करते हुए चरम स्थिति में पहुँचें। यही सिंहासन का समग्र रूप है।



1. पहली स्थिति –


वज्रासन कर मुख विस्तारित कर मुंह पूरा खोल दें। आंखें और नाक भी खोल दें। आंखों को नासिका के अग्रभाग पर केन्द्रित करें। थोड़ी देर तक सॉस रोक कर, जीभ को अंदर खींच लें। मुंह और जीभ को ढीला करते हुए सांस को सामान्य स्थिति में ले आवें।


2. दूसरी स्थिति –


पहली स्थिति में बैठ कर, जीभ के अग्र भाग को ऊपर की ओर मोड़ कर उससे अलिजिव्हा (पडजीभ) को छूने का प्रयत्न करें। शक्तिभर साँस को रोकते हुए इस स्थिति में रहें।


3. तीसरी स्थिति –


पहली स्थिति में रह कर जीभ को मुंह के बाहर निकालते हुए उससे ठोढी को छूने का प्रयास करें। साँस को शक्ति भर रोक कर इस स्थिति में रहें।


4. चौथी स्थिति –


तीसरी स्थिति में रह कर मुँह से जीभ बाहर निकालें। नाक से गहरी साँस लेते हुए, कंठ से ध्वनि करते हुए फोर्स के साथ साँस छोड़ें।


5. पाँचवीं स्थिति –


चौथी स्थिति में रह कर नाक से लंबी साँस लें | रुक-रुक कर फोर्स के साथ जोर से सिंह की तरह गरजते हुए मुँह से ध्वनि करते हुए सॉस छोड़ते रहें। अंतिम ध्वनि लंबी चले। यह सिंहासन की चरम स्थिति है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएं तीन चार बार करें। गले में मन केंद्रित रखें ।
इसके बाद दोनों कलाइयों तथा दोनों हाथों की मालिश करें। इस आसन से गले में सूखापन आता है। इसलिए तुरंत शीतली और शीतकारी प्राणायाम अवश्य करें। इनका का विवरण अध्याय 18 में है।

लाभ –


इस क्रिया में कंठ, छाती और पेट प्रभावित होते हैं। गला साफ होता है| गले की नसें साफ होती हैं। टान्सिल्स कम होते हैं| कान, अांख, नाक तथा जीभ से संबंधित रोग दूर होते हैं । थैराइड़ तथा कंठ संबंधी व्याधियाँ दूर होती हैं|स्मरण शक्ति बढ़ती है। एकाग्रता की वृद्धि होती है|स्वर माधुर्य बढ़ता है।


8. गोमुखासन



इस आसन में घुटनों की स्थिती गाय के मुख के रूप में होती है। अत: यह आसन गोमुखासन कहलाता है।


विधि –


वज्रासन में बैठें। दायाँ पैर बाहर निकालें। बायें घुटने पर दायाँ घुटना आ जाये इस तरह पैर रखें ।
1. दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें। साँस छोड़ते हुए, सामने की ओर झुकते हुए ठोढ़ी से दायें घुटने का स्पर्श करें। साँस लेते हुए यथास्थिति में आवें | 5-6 बार ऐसा करें |
इसी प्रकार पैर बदल कर भी करें।
2. उपरोक्त स्थिति में अब दायाँ हाथ दायें कंधे के ऊपर से पीठ के पीछे नीचे झुकावें तथा बायाँ हाथ बायीं बगल से पीठ के पीछे ऊपर उठावें। दोनों हाथों की उंगलियाँ मिला लें। साँस छोडते हुए ठोढी से घुटना छुएँ |
साँस लेते हुए यथास्थिति में आवें। 5-6 बार करने के बाद हाथ और पैर बदल कर भी करें। शरीर के विविध जोड़ों पर ध्यान लगावें ।
सूचना –
आरंभ में हाथ पकड़ना संभव न हो तो रूमाल को साधन बना कर उपयोग में लावें।


लाभ –


यह आसन पेट के अवयवों, पेट की नसों तथा रीढ़ के लिए लाभदायक है। ग्रंथियों में चुस्ती आती है| गर्दन संबंधी दर्द दूर होते हैं। मधुमेह, अतिमूत्र, इंद्रियों की कमज़ोरी, रक्तचाप तथा हर्निया दूर होते है| शरीर के सभी जोड़ों का दर्द दूर करता है।


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11. शवासन या शत्यासन


शवासन या शत्यासन

इस स्थिति में शरीर शव जैसा निश्चल रहता है। इसलिए यह शवासन कहलाता है| मन की शांति प्राप्त होती है |


विधि –


पीठ के बल लेट कर सभी अवयव होला कर दें। दोनों हथेलियाँ जांघों से थोड़ी दूर आसमान की ओर रखें। पैर पसार कर एड़ियाँ दूर-दूर रखें। यही शवासन या शांत्यासन है। आांखे बंद रहे।
श्वास प्रश्वास सामान्य रूप से चलें। नन्हें शिशु के श्वास प्रश्वासों की तरह उदर की स्थिति रहे। अर्थात् श्वास लेने पर उदर फूले, श्वास छोड़ने पर पेट सहज रूप से पिचक कर अंदर चला जाये |
दायीं ओर तथा बायीं ओर लेट कर भी शवासन कर सकते हैं।
दायाँ हाथ सिर के नीचे रख कर दायीं ओर करवट लें। बायाँ हाथ शरीर पर रख कर यह आसन करें।
इसी प्रकार बायाँ हाथ सिर के नीचे रखें | बायीं ओर पलट कर दायाँ हाथ शरीर पर रख कर भी यह आसन करें। शारीरिक एवं मानसिक रूप से सभी अवयव ध्यान लगा कर बिल्कुल ढीला कर दें।


लाभ –


इस आसन से सभी अवयवों को आराम मिलेगा। थकावट दूर होगी। टेन्शन दूर होगा। रक्तचाप नियमित हो जायगा । अवयवों को शांति एवं स्फूर्ति मिलेगी।


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13. मत्स्यसंनाः

इस आसन में शरीर मछली के रूप में रहता है| इसीलिए यह मत्स्यासन कहलाता है।


विधि –


पद्मासन में बैठे। एक-एक कुहनी बगल में ज़मीन पर टिकावें। पीठ के बल लेटें | पीठ ऊपर उठा कर सिर का ऊपरी भाग ज़मीन पर टिकावें | दोनों हाथों से पैरों के दोनों अंगूठे पकड़ें। दोनों कुहनियाँ ज़मीन पर टिकावें। सांस सामान्य रहे। गर्दन पर ध्यान केंद्रित करें | बैठ कह किये जानेवाले योगासन


सूचना –


जो लोग पद्मासन ठीक ढंग से नहीं कर सकते वे पैर सीधे पसार कर भी मत्स्यासन कर सकते हैं।


लाभ –

इस आसन से स्पांडलाइटिस, गर्दन संबंधी दर्द कम होते हैं। छाती, फेफड़ों तथा उदर के अवयवों को बल मिलता है। अपान वायु निकल जाती है| पेट साफ होता है।


14. सुप्त-मत्स्येंद्रासन


मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर यह आसन मत्स्येन्द्रासन कहलाता है| यह आसन बैठ कर किया जाता है| साथ ही साथ यह आसन पीठ के बल लेट कर भी सरल ढंग से किया जाता है।


विधि –


पीठ के बल लेट कर हाथ पसार कर पैरों को पास-पास रखें | दायाँ पैर उठा कर बायें घुटने के पार ज़मीन पर रखें। बायाँ हाथ उठा कर दायें घुटने को पकड़ें। बायाँ घुटना नीचे ही मोड़ कर बायें पैर के अंगूठे को दायें हाथ से पकड़े।
ओर घुमावें। सांस लेते हुए दायां घुटना ऊपर उठावें | यह क्रिया 5-6 बार करें।
इसी प्रकार हाथ पैर बदल कर दूसरी ओर भी करें।
कमर या पेट पर ध्यान केंद्रित रखें |

लाभ –


लिवर, स्लीन, मूत्रपिड, पेंक्रियास तथा शुक्राशय को शक्ति मिलती है। पेट तथा अन्य भागों की व्यर्थ चरबी घटती है। घुटनों के दर्द, गर्दन संबंधी दर्द तथा मधुमेह के निवारण में यह आसन बड़ा सहयोग देता है।


15. गोरक्षासन

गुरु गोरखनाथ यह आसन करते थे। इसलिए यह गोरक्षासन कहलाता है।

विधि –

भद्रासन की तरह दोनों तलुवे मिला कर एड़ियाँ समीप लावें। दोनों हाथ ज़मीन पर रख कर दबाते हुए, नितंबों को उठा कर एड़ियों पर रख कर बैठे | बैलेन्स ठीक रख कर दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखें। थोड़ी देर बाद दोनों हाथ छाती के पास या ऊपर उठा कर नमस्कार करें। साँस सामान्य रहे। थोड़ी देर के बाद पैर सीधा करें | जननेंद्रिय पर ध्यान रखें |

लाभ –

शुक्र ग्रंथियाँ ताकतवर बनती हैं। इससे वीर्य की रक्षा होती है। मूत्र संबंधी दोष दूर होते हैं। स्त्रियों के ऋतुस्त्राव संबंधी दोष दूर होते हैं। ल्युकोरिया तथा कमर दर्द कम होते हैं।

निषेध –

चरबी जिनके शरीर में ज्यादा रहे वे जबर्दस्ती यह आसन न करें | हृदय दर्द से पीड़ित लोग सावधानी से यह आसन करें।


16. पश्चिमोत्तानासन

पश्चिम का मतलब है पीठ | यह पीठ को खींच कर रखनेवाला आसन है। इसलिए यह पश्चिमोत्तानासन कहलाता है।
ये क्रियाएँ करते समय आगे झुकने पर सांस छोड़ें। उठने पर साँस लें।


विधि –

1. दोनों पैर आगे की ओर पसारें । पैरों के अंगुठे एक दूसरे को छूते रहें। आगे पीछे झूलते रहें। घुटनों, पिंडलियों तथा पैरों की उंगलियों का स्पर्श हाथों से करते रहें।
2. बैठ कर दोनों पैर आगे की ओर पसारें। दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखें ।
3. ऐसा रख कर हाथ और थोड़ा आगे पसारें | पैरों की उँगलियाँ पकड़ने का प्रयास करें |
4. पैर पसार कर, पैरों की उँगलियाँ पकड़ें। दोनों कुहनियाँ दोनों घुटनों के बगल में ज़मीन पर लगाने का प्रयास करें। माथे या नाक से घुटनों का स्पर्श करें। उपर्युक्त चार स्तरों का अभ्यास करते-करते इस चरम स्तर तक पहुँचने का प्रयास करते रहें। पीठ पर मन लगा रहें |

लाभ –

चलने और ज्यादा देर खड़े रहने के लिये पीठ की शक्ति काम आती है| वह शक्ति इस आसन से पीठ को प्राप्त होती है। शरीर की स्थूलता कम होती है। रीढ़ की हड़ी चुस्त रहती है। स्त्रियों का ऋतुस्त्राव ठीक तरह न हो तो इस आसन से वह दोष दूर होता है। यह कठिन आसन है। स्थूलकाय वाले स्त्री-पुरुषों, तोंदवालों एवं रीढ़ की हड़ी न झुका सकनेवालों को बिना जल्दबाज़ी के यह आसन बड़ी सावधानी से करना चाहिए।


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19. मयूरासन


इस आसन में शरीर का रूप मोर के समान होता है। इसलिए यह मयूरासन कहलाता है| यह एक कठिन आसन है |

विधि –


वज्रासन में बैठे | हथेलियाँ ज़मीन पर टिकावें | हाथों की उंगलियाँ घुटनों की ओर, घुटनों के पास रहें। आगे की ओर झुकते हुए माथा ज़मीन पर रखें। कमर उठावें। धीरे-धीरे दोनों पैर पीछे सीधे पसारते हुए उन्हें ऊपर उठावें। इसके बाद सारे शरीर को हाथों पर रखते हुए कुहनियों पर पेट टिका रखें । सिर थोड़ा ऊपर उठावें। सारा शरीर सीधा रहे। धीमे से पैर मयूर पंख की तरह पीछे ऊपर उठे रहें। सांस सामान्य स्थिति में रहे।
ध्यान नाभि पर केन्द्रित रहे। इसके बाद धीरे से घुटने ज़मीन पर उतार कर आराम लें। हाथों की मालिश कर उनकी थकावट दूर करें।


लाभ –

आंतों तथा जीर्णकोश को बल मिलता है। जीर्ण शक्ति बढ़ती है। स्थूलकाय घटता है। कलाइयाँ और कंधे बलिष्ठ होते हैं। पेट के कृमि संबंधी दोष दूर होते हैं। मधुमेह कम होता है। शास्त्रों के अनुसार जो साधक मयूरासन नियमबद्ध रूप से लगातार करते हैं,वे विष भी हज़म कर सकते हैं।


निषेध –

कमज़ोर हाथोंवाले, अलसर तथा हर्निया से पीड़ित, हृदय रोग से त्रस्त लोग तथा गर्भिणी स्त्रियाँ यह आसन न करें। कुछ लोगों के मतानुसार स्त्रियाँ यह आसन न करें।

19.1 मयूरी आसन



मयूरासन जैसा ही मयूरी आसन है। इसमें शरीर मोरनी की भांति होता है। यह भी एक कठिन आसन है।


विधि –

पद्मासन में बैठे। मयूरासन की ही तरह हाथों पर सारा शरीर टिका रखें। मयूरासन में पैर सीधे पसारे रहते हैं। पर इस मयूरी आसन में पैर पद्मासन की स्थिति में रहते हैं। नाभि पर ध्यान रहे |


लाभ –

मयूरासन एवं पद्मासन से होनेवाले सभी लाभ इस आसन से होते हैं।


निषेध –

मयूरासन में सूचित निषेध इस आसन में भी लागू होते हैं।

20.पद्म कुक्कुटासन

(कमल में कुक्कुट)


प्रारंभिक स्थिति :
पद्मासन।


ध्यान दें :
संतुलन पर।


श्वास :
सामान्य।


दोहराना :
1 बार।

अभ्यास :
पद्मासन में बैठें। > हाथों को जांघों और पिंडलियों के बीच से निकालें और हाथों को फर्श पर रखें। अंगुलियाँ फैली हुई और बाहर की ओर इशारा करती है। शरीर के भार को आगे हाथों पर ले आयें। > शरीर को उठायें और इस मुद्रा में 1 मिनट तक बने रहें। धीरे-धीरे प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।
लाभ :
बाजुओं और कंधों की मांसपेशियों को मजबूत करता है। संतुलन और एकाग्रता में सुधार लाता है।
सावधानी :
कलाई की नसों की समस्या हो तो इस आसन से बचें।




21. कूर्मासन

कूर्म याने कछुआ है। इस आसन में शरीर कछुए के रूप में रहता है इसलिए यह कूर्मासन कहलाता है।


विधि –

1 दोनों पैर आगे की ओर पसारें। दोनों पैर घुटनों से ऊपर थोडा उठावें | दोनों हाथ घुटनों के नीचे से बाहर ले जाकर ज़मीन पर टिकावें । थोडी देर के बाद सांस लेते हुए आराम लें।
2. दूसरी स्थिति में दोनों तलुवे भी मिलावें। पेट पर ध्यान रखें |


लाभ –

पेट के रोग दूर होते हैं। तोंद कम होती है | कछुए की तरह मनुष्य की उम्र बढ़ती है।



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23.मण्डुकासन

प्रारंभिक स्थिति :
वज्रासन।
ध्यान दें :
निचले पेट पर।
श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित, मुद्रा में सामान्य श्वास।
दोहराना :
3 बार।




अभ्यास :
वज्रासन में बैठें। > पूरक करते हुए शरीर को ऊपर खींचें और कोहनियां कमर से बाहर निकालें। दोनों हाथों से मुट्ठियां बनायें (अंगूठा मुट्ठी के अन्दर रहेगा)। मुट्ठियों को अरूमूल की चुन्नट में रखें। > धीरे-धीरे रेचक करते हुए पीठ को सीधा रखते हुए इतना आगे झुकें कि मस्तक फर्श को छूने लगे। नितम्ब एडियों पर रहेंगे। > सामान्य श्वास लेते हुए इस स्थिति में सचेत रहते हुए विश्राम करें। निचले पेट पर मुट्ठियों के दबाव को महसूस करें। यह देखें कि पूरक के साथ किस प्रकार दबाव बढ़ जाता है। > पूरक करते हुए पीठ को सीधा रखते हुए शरीर को आहिस्ता से ऊपर उठायें। > रेचक करते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।
इस व्यायाम का अभ्यास 3 बार करें। अन्तिम दोहराव के दौरान आगे झुकी हुई स्थिति में पूरक और रेचक गहराई से करें जिससे आन्तरिक अंगों पर गहन मालिश का प्रभाव पड़े।
लाभ :
पीठ और गर्दन को आराम देता है। गुर्दे और पेट के अंगों की मालिश होती है और इन क्षेत्रों में रक्तापूर्ति प्रोत्साहित होती है। सिर में रक्त का दृढ़ प्रवाह एकाग्रता को बढ़ाता है और नाडिय़ों को शान्त करता है।
सावधानी :
उच्च रक्तचाप या चक्कर आने की वृत्ति होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिये।

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26. गरुड़ासन

इस आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी जैसी रहती है। अत: यह गरुड़ासन कहलाता है।


विधि –


सीधे खड़े रह कर हाथ पैर क्रास करें।
दायाँ पॉव ज़मीन पर टिकावें | बायाँ पाँव ज़मीन से थोड़ा ऊपर रहे। वह घुटने के पास ऊपर से बगल में मुड़ कर पिंडली के नीचे के हिस्से को छुएँ। इसी प्रकार दायें हाथ से बायाँ हाथ उलझावें। दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करें। साँस सामान्य रहे | हाथ पैर बदल कर भी यह आसन करें | मन के बैलेन्स पर ध्यान केन्द्रित रहे


लाभ –


हर्निया, कमर दर्द, पक्षवात, अंडवृद्धि तथा साइटिका दर्द कम होंगे। नसों में स्फूर्ति भरेगी। वे चुस्त रहेंगी। शरीर के जोड लचीले रहेंगे।

सूचना –

आरंभ में उलझे पैर की उंगलियाँ भी ज़मीन पर रख कर अभ्यास करना चाहिए।

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28. शलभासन



शलभ याने टिड़ी के आकार में यह आसन रहता है। अत: यह शलभासन कहलाता है।


विधि –


पेट के बल लेट कर दोनों हाथ, दोनों जाँघों के नीचे रखें। साँस लेते हुए दायाँ पैर ऊपर उठावें। थोडी देर तक कुंभक कर साँस छोड़ते हुए धीरेधीरे पैर को नीचे उतारे। ठोढ़ी ज़मीन से लगी रहे। आँखें मूंद कर रखें। घुटनों को न मोड़े।
इसी तरह बायें पैर से भी करें।

इसके बाद साँस लेते हुए दोनों पैर ऊपर उठावें। थोड़ी देर पैरों को उस तरह रख कर बाद सांस छोड़ते हुए दोनों पैर नीचे उतारें | यह एक रौड है| 2 या 3 रौड ऐसा करें। मन को उदर पर केन्द्रित करें।



लाभ –

कब्ज़ दूर होगा | बड़ी आँत और छोटी ऑत साफ होंगी। मधुमेह, साइटिका दर्द कम होंगे। पेंक्रियास ग्रंथि ठीक तरह काम करेगी |

निषेध –

अलसर, हर्निया तथा अधिक पेट दर्द के रोगी यह आसन न करें।






29. निरालंबासन या मकरासन


मकर याने मगर है। यह आसन पानी के अंदर रहने वाले मगर के आकार में होता है| इसलिए यह मकरासन कहलाता है|


विधि –


भुजंगासन की स्थिति में रहें। दोनों हथेलियों पर ठोढ़ी रख कर दोनों कुहनियाँ मिला कर ज़मीन पर टिकावें। श्वास सामान्य रहे। 2 मिनट इस स्थिति में रहें, बाद सिर नीचे उतारें। गर्दन और रीढ़ की हड़ी पर ध्यान दें |

सूचना –


प्रात: उठने ही इसे अपने विस्तर में ही करें | कम्प्यूटर के आपरेटरों, हिसाब आदि लिखनेवालों, पुस्तकें पढ़नेवालों सिर झुका कर काम करने वालों को हर रोज़ रात के वक्त भोजन के पहले यह आसन अवश्य करना चाहिए।

लाभ –

स्पांडलाइटिस तथा गर्दन और कमर की व्याधियाँ दूर होंगी।




30. उष्ट्रासन


उष्ट्र याने ऊँट है| इस आसन में रह कर शरीर की स्थिति, ऊँट के आकार में रहती है। इसलिए यह आसन उष्ट्रासन कहलाता है। नीचे की प्रत्येक क्रिया 4-5 बार दुहराएँ। छाती पर ध्यान केन्द्रित करें।


विधि –


(1) वज्रासन की स्थिति में दोनों हाथ कमर से लगा कर बैठे। साँस लेते हुए घुटने ज़मीन पर रख कर नितंब एवं जांघ ऊपर उठावें। ऊपर देखें साँस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें। घुटनों और पाँवों के बीच थोड़ी दूरी रहे। यह क्रिया उष्ट्रासन की पहली स्थिति है।



(2) ऊपर की स्थिति में हाथ ऊपर उठाते हुए यह क्रिया करें। ऊपर देखें। यह दूसरी स्थिति है।



(3) वज्रासन में रह कर पैरों की उंगलियों पर बैठे। दोनों हाथों से दोनों टखने पकड़ें। साँस खूब लेते हुए जाँघ, कूल्हे, छाती एवं सिर उठावें। सांस छोड़ते हुए यथा स्थिति में आवें। यह उष्ट्रासन की चरम स्थिति है।


सूचना –

जब शरीर को पीछे की ओर झुकाते हैं, तब शरीर का भार घुटनों पर डालें | बैलेन्स पर अधिक ध्यान दें | नहीं तो गिर जाने की संभावना रहती है। हर्निया के रोगी इसे न करें।


विशेष –

भारत के प्रथम आकाश यात्री राकेश शर्माने यह आसन का अभ्यास कर के शक्ति प्राप्त की थी जिस कारण से सारे विश्व में योग विद्या का बडा प्रचार हो |


लाभ –


दमा, टी.बी. तथा छाती, फेफड़े और हृदय से संबंधित व्याधियों को कम करने के लिए यह आसन बड़ा उपयोगी है। स्थूलकाय कम होता है| रीढ़ की हड़ी में चुस्ती आती है। जीर्णशक्ति बढ़ती है। घुटनें, जाँच, कमर, पीठ, भुजाएँ तथा गर्दन आदि अवयव बलिष्ठ होते हैं।



31. भुजंगासन


यह आसन फन फैलानेवाले सांप के आकार में रहता है। अत: यह भुजंगासन कहलाता है|
आम तौर पर हम सिर झुकाते रहते हैं। इससे गर्दन संबंधी दर्द तथा स्पांडलाइटिस आदि व्याधियाँ आती हैं। परन्तु भुजंगासन में सिर को पीछे की ओर झुका कर रखते हैं। इससे उपर्युक्त व्याधियाँ दूर होती हैं।

विधि –

1. पेट के बल लेटें। शरीर को सीधे पसारें। दोनों पाँव ज़मीन छूते रहें। दोनों पैरों के अंगूठे व एड़ियाँ मिली रहें। दोनों हथेलियाँ छाती की दोनों ओर जमीन पर रखें। साँस लेते हुए कुहनियों के सहारे सिर और छाती को ऊपर उठावें । थोड़ी देर के बाद सांस छोड़ते हुए पूर्वस्थिति में आवें| गर्दन पर ध्यान हो 

|2. साँस लेते हुए छाती सहित हाथ भी ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए हाथ और सिर नीचे उतारें। छाती में ध्यान रखें |



3. दोनो हथेलियाँ छाती के पास ज़मीन पर टिकावें। साँस लेते हुए सिर, छाती तथा नाभि सहित पेट को उठाते हुए आसमान की ओर देखें| सांस छोड़ते हुए यथास्थिति में आवें। कंधों पर ध्यान दें।

4 दोनों हथेलियाँ और दोनों हाथों की उँगलियाँ उलझा कर गर्दन पर रखें। साँस लेते हुए छाती, सिर और कुहनियाँ ऊपर उटावें। साँस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें | गर्दन पर ध्यान रखें।




5. (अ) दोनों हाथ, बगल में सीधे लंबा पसारें। दायाँ हाथ ऊपर उठावें। सिर दायीं ओर उठाते हुए साँस लें। उठे हुए दायें हाथ को देखें। सांस छोड़ते हुए उसे नीचे उतारें।
(आ) इसी तरह बायाँ हाथ उठा कर भी करें।



(इ) साँस लेते हुए दोनों हाथ छाती और सिर ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए नीचे उतारें। छाती पर ध्यान दें |


6. दोनों हाथ कमर के पीछे रख कर, एक हाथ की कलाई को दूसरे हाथ से पकड़ें।


 साँस लेते हुए सिर और छाती को ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए उन्हें नीचे उतारें। कमर पर ध्यान दें |उपर्युक्त प्रत्येक क्रिया 3 से 5 बार करें।
गर्दन, छाती, कमर तथा रीढ़ की हड़ी पर मन को केन्द्रित करें।


लाभ –


स्वप्न स्खलन आदि दोष दूर होंगे। वीर्य की रक्षा होगी। स्त्रियों का गर्भाशय शुद्ध होगा। ऋतुस्राव संबंधी बीमारियाँ दूर होंगी। स्मरण शक्ति बढ़ेगी। विद्यार्थियों के लिए यह बड़ा उपयोगी है। स्पांडलाइटिस तथा गर्दन संबंधी अन्य दर्द कम होंगे। छाती, हृदय, फेफड़े, रीढ़ की हड़ी तथा कमर सुदृढ़ होंगे।

निषेध –

गर्भिणी स्त्रियाँ, हर्निया तथा अल्सर के रोगी यह आसन न करें।


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 Last Date Modified

2024-03-29 12:47:38

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